*#नतस्यप्प्रतिमाऽअस्त्तियस्यनाममहद्द्यशः।।32/3 वेदोंका नाम लेकरके वेदोंका ही खंडन करने वाले आर्यसमाजी लोग अपना अनर्गल प्रलाप करते हैं "कि उसकी कोई प्रतिमा नहीं होती" इस मंत्रमें प्रतिमाका वे अनर्थ मूर्ति कर रहे हैं।परंतु एक शब्दके अनेक अर्थ होते हैं कहां कौनसा अर्थ ही लिया जाए इसका पूर्ण विज्ञान है अन्यथा अनर्थ हो जाएगा इसका उन्हें ज्ञान नहीं है, तो यहां प्रतिमाका अर्थ है माप/ इयत्ता/ परिमाण अर्थात् उस ईश्वरकी महिमाका कोई अंत नहीं है, कोई माप नहीं है, कोई परिमाण नहीं है अर्थात् उसकी महिमा अनंत है। यह इसका वास्तविक अर्थ है। उसका अनर्थ करके ये लोग प्रलाप कर रहे हैं उस ईश्वरको केवल निर्गुण मान रहे हैं जबकि वेद ईश्वरको/ ब्रह्मको निर्गुण और सगुण दोनों ही मानता है हमारे यहां मंत्र और ब्राह्मण दोनों मिलकरके वेद हैं #मन्त्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम्। ये लोग केवल संहिता भागको ही और वह भी अपने मतलबका जितना है उसको ही वेद मानते हैं अन्य संपूर्णको वेद नहीं मानते हैं यह इनकी मूर्खता है सनातनधर्मी लोग इनसे सदा सावधान रहें। हर हर महादेव*