राधा से सगाई के बाद श्रीकृष्ण के बोए मोती आज भी निकलते हैं पेड़ों से
सच्चे प्यार का जिक्र हो तो सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण और राधा का अलौकिक प्रेम याद आता है। श्रीकृष्ण और राधा की प्रेम कहानी अप्रतिम है, लेकिन इसके बारे में अभी तक बहुत कम ही जानकारी उपलब्ध है। राधा-कृष्ण का नाम हमेशा एक साथ लिया जाता है। उनकी पूजा भी एक साथ ही की जाती है। फिर भी, राधा को लेकर लोगों के बीच दो तरह की धारणाएं मिलती हैं। लोगों का एक वर्ग कहता है कि राधा-कृष्ण का अटूट प्रेम किसी बंधन का मोहताज नहीं था। दूसरी ओर, यह धारणा है कि राधा का चरित्र सिर्फ एक कोरी कल्पना मात्र है।
माना जाता है कि श्रीकृष्ण और राधा के बीच सांसारिक रिश्ते नहीं थे, लेकिन नंदगाव का मोती कुंड आज भी दोनों की सगाई की गवाही देता है। पुराणों के अनुसार, गोवर्धन पर्वत उठाने की लीला के बाद श्रीकृष्ण और राधा की सगाई हुई थी। इस दौरान श्रीकृष्ण को मिले मोतियों को उन्होंने कुंड के पास जमीन में बो दिया था, जिसके बाद यहां मोतियों के पेड़ उग आए। आज भी लोग यहां पर पेड़ों से मोती बटोरने आते हैं।
बरसाना के विरक्त संत रमेश बाबा बताते हैं कि गर्ग संहिता, गौतमी तंत्र समेत कई ग्रंथों में इस महान मोती कुंड और राधा-कृष्ण की सगाई का वर्णन है। आज भी ब्रज की 84 कोस यात्रा के दौरान यहां पर लोग मोती जैसे फल बटोरने आते हैं। यह डोगर (पीलू) का पेड़ है। पूरे ब्रज में कुछ ही जगह ये पेड़ हैं, लेकिन मोती जैसे फल सिर्फ मोती कुंड के पास मौजूद पेड़ में ही मिलते हैं। यह श्रीकृष्ण की माया है।
संत रमेश बाबा कहते हैं कि गर्ग संहिता ग्रंथ के अनुसार, जब इंद्र की बारिश के प्रकोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया था, तब राधा और कृष्ण की सगाई कर दी गई थी। सगाई के दौरान राधा के पिता वृषभानु ने नंदबाबा को मोती दिए थे। इसके बाद नंदबाबा चिंता में पड़ गए कि वह इतने कीमती मोती कैसे रखें। श्रीकृष्ण उनकी यह चिंता समझ गए और मां यशोदा से लड़कर मोती ले लिए। उन्होंने कुंड के पास जमीन में मोती बो दिए। जब यशोदा ने श्रीकृष्ण से पूछा कि मोती कहां है, तब उन्होंने इसके बारे में बताया।
नंद बाबा श्रीकृष्ण की इस हरकत से नाराज हुए और मोती जमीन से निकालकर लाने के लिए लोगों को भेजा। जब लोग यहां पहुंचे तो देखा कि यहां पेड़ उग आए हैं और पेड़ों पर मोती लटके हुए हैं। इसके बाद बैलगाड़ी में मोती भरकर घर भेजे गए और तभी से कुंड का नाम मोती कुंड पड़ गया।
भागवत पुराण के अनुसार, कृष्ण का विवाह रानी रुक्मिणी से ही हुआ था, लेकिन कुछ तथ्य ऐसे भी हैं जो यह बताते हैं कि कृष्ण ने राधा से भी विवाह किया था। मथुरा से करीब 25 किलोमीटर दूर मांट तहसील के गांव छांहरी के समीप यमुना किनारे भांडीर वन है। यही वह स्थान है, जहां भगवान श्रीकृष्ण और राधा का विवाह हुआ माना जाता है। हालांकि, कृष्ण और राधा के कथानक से परिचित ज्यादातर भक्त यही जानते हैं कि दोनों का कभी विवाह नहीं हो सका। मगर, गौड़ीय संप्रदाय में राधा के कृष्ण से विवाह होने का विश्वास किया जाता है। बृज के भांडीर वन में राधा-कृष्ण के प्रगाढ़ प्रेम के अध्याय का हर अक्षर साक्षात हो उठता है। ऐसी मान्यता है कि स्वयं ब्रह्मा ने यहां अवतरित होकर राधा और कृष्ण का गांधर्व विवाह कराया था। ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्री गर्ग संहिता और गीत गोविंद में भी राधा-कृष्ण के भांडीर वन में विवाह का वर्णन मिलता है। यमुना किनारे करीब छह एकड़ परिधि में फैले भांडीर वन में एक बड़ी संख्या में कदंब व कई अन्य तरह के प्राचीन वृक्ष मौजूद हैं। यहां स्थित मंदिर में राधा और श्याम की जोड़ी विग्रह रूप में विराजमान है। इस मूर्ति में कृष्ण का दाहिना हाथ राधा की मांग भरने का भाव प्रदर्शित कर रहा है।
मंदिर प्रांगण में ही एक प्राचीन वट वृक्ष है। लोकोक्तियों के अनुसार इसी वृक्ष के नीचे राधा और कृष्ण का गांधर्व विवाह हुआ था। वट वृक्ष के नीचे बने मंदिर में कृष्ण, राधा और ब्रह्मा की प्रतिमाएं विराजमान हैं। महर्षि गर्ग द्वारा रचित श्री गर्ग संहिता में राधा और कृष्ण के जीवन का विस्तार से जिक्र किया गया है। इस ग्रंथ के अलग-अलग कई खंडों में श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर गो-लोक गमन तक की हर घटना का विस्तार से वर्णन है। संहिता के गो-लोक खंड में इस विवाह का पूरा ब्योरा दिया गया है। गीत गोविंद में भी एक बार नंद बाबा के श्रीकृष्ण को लेकर भांडीर वन में जाने की बात कही गई है। कथानक के अनुसार, सघन वृक्षों से घिरा होने के चलते इस वन में सूर्य की किरणें भी बहुत ही कम प्रवेश करती थीं। सहसा चारों ओर काले-काले बादल घिर आए और तेज आंधी के साथ वर्षा भी प्रारंभ हो गई।
चारों तरफ अंधकार हो गया। ऐसे में नंद बाबा भयभीत हो उठे। उन्होंने अपनी गोद में कन्हैया को सावधानी से छिपा लिया। उसी समय वहां सोलह शृंगार किए हुए अपूर्व सुंदरी राधा एक ज्योति पुंज के रूप में उपस्थित हुर्इं। उन्होंने नंद बाबा के आगे अपने दोनों हाथों को पसार दिया, जैसे कि कृष्ण को अपनी गोद में लेना चाहती हों। विस्मृत नंद बाबा ने कृष्ण को उन्हें समर्पित कर दिया। राधा कृष्ण को इसी भांडीर वट के नीचे ले गईं। वहां पहुंचते ही श्रीकृष्ण युवक रूप में प्रकट हो गए। राधा के आह्वान पर ही वहां चतुर्मुख ब्रह्मा भी उपस्थित हुए। ब्रह्मा ने वेद मंत्रों के द्वारा दोनों का विवाह संपन्न कराया। विवाहोपरांत, कृष्ण ने पुन: बालक का रूप धारण कर लिया और राधा ने कृष्ण को पूर्ववत प्रतीक्षा में खड़े नंद बाबा को सौंप दिया।
एक अन्य प्रसंग के अनुसार, एक समय गर्मी के दिनों में सखाओं के साथ श्रीकृष्ण ने गायों को यमुना में पानी पिलाकर उन्हें चरने के लिए छोड़ दिया और स्वयं मंडलीबद्ध होकर भोजन व क्रीड़ा-कौतुक में इतने मग्न हो गए कि उन्हें यह पता ही नहीं चला कि गायें उन्हें छोड़कर बहुत दूर निकल गई हैं। इधर, उनके सखा भी कृष्ण और बलदाऊ को बिना सूचित किए गायों को खोजते हुए घने वन में प्रवेश कर गए। इसी दौरान, दुष्ट राजा कंस के अनुचरों ने वन में आग लगा दी। बचने का और कोई उपाय न देखकर वे कृष्ण को पुकारने लगे। श्रीकृष्ण ने पलभर में उस दावाग्नि का दमन कर लिया।
सखाओं ने आंखें खोलते ही देखा कि वे सभी भांडीर वट की शीतल छाया में कृष्ण और बलदाऊ के साथ पहले की तरह भोजन करने और खेल खेलने में मग्न हैं। पास में गाएं भी जुगाली करती हुर्इं आराम से बैठी हैं। दावाग्नि की विपत्ति उन्हें एक स्वप्न की भांति प्रतीत हुई। श्रीकृष्ण ने जिस जगह पर दावाग्नि का दमन किया, उसका वर्तमान नाम आगियारा है। यह स्थान यमुना के उस पार भांडीर गांव में आज भी मौजूद है। श्रीमद्भागवत में भी इस लीला का विस्तृत वर्णन मिलता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी इस घटना के बारे विस्तार से लिखा गया है।
यहां नारायण नारद मुनि को इसी घटना के बारे में विस्तार से बताते हैं। नारायण कहते हैं कि पूर्व की घटनाओं और वचनों के चलते उन्हें देवी लक्ष्मी के साथ एक विवाह का आयोजन करना था जिसे उन्होंने ब्रह्मा का उपस्थिति में पूरा किया। भांडीर वन को राधा और कृष्ण से संबंधित होने के कारण बहुत पवित्र माना जाता है। भांडीर वट के नीचे राधा-कृष्ण के साथ भगवान ब्रह्मा की मूर्ति स्थापित है। साथ ही, वहां लगी एक सूचना-पट्ट पर इस आयोजन का पूरा वर्णन भी लिखा हुआ है। जिस मंडप में भगवान श्रीकृष्ण और राधा के फेरे हुए थे, वह मंडप भी यहां मौजूद है। यह मंडप वटवृक्ष के पेड़ों से बना हुआ है। इसमें एक तरफ राधा और दूसरी तरफ भगवान श्रीकृष्ण दिखाई देते हैं।
संकलनकर्ता - वीरेंद्र तिवारी