*श्रद्धेय पंडित श्री नंदकिशोर पाण्डेय जी भागवताचार्य*
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*अधूरी भक्ति*
एक छोटे से गाँव में साधू रहता था, वह हर वक्त कान्हा के स्मरण में लगा रहता। वह कान्हा के लिए रोज खीर चावल बनाता, और हर दिन उनकें इंतजार में आस लगाए बैठा रहता था, कि मेरे कान्हा कब आयेंगे,
उस साधू की एक बुरी आदत थी, वह गाँव में रहने वाले नीची जाती के लोगो से दूर रहता था, उन्हें आश्रम में नही आने देता था, उसका मानना था, कान्हा इससे नाराज हो जाएंगे, वो तो स्वामी हैं, इन नीच छोटी जाति वालों के आश्रम में प्रवेश करने से मुझे दर्शन नही देंगे, इसलिए वह कभी किसी नीच जाती के लोगो से ठीक से बात नही करता था...........
उसके आश्रम से थोड़ी दूर एक कोड़ी रहता था, वह भी कान्हा का भक्त था, नित्य प्रतिदिन उनकी उपासना करता था, और हर वक्त कान्हा की भक्ति में डूबा रहता जब भी साधू उसके घर के पास से गुजरता तो कोड़ी को कहता नीच तुझ जैंसे कोड़ी से कान्हा क्या मिलने आयेंगे, वो तो स्वामी हैं, तझ जैसे के घर में क्यूं आने लगें भला, और बोलते बोलते अपने आश्रम चले जाता।
कुछ वर्ष व्यतीत हुये, अब साधू को लगने लगा, कान्हा क्यूं मुझे दर्शन नही दे रहे, और साधू उसकी मूर्ति के सामने रोने लगा, और कहने लगा प्रभु एक बार तो मुझे दर्शन दें दो, मैं प्रतिदन आपके लिए खीर_चावल बनाता हूं, एक बार तो आ कर भोग लगा लें, और उदास होकर कान्हा के चरणों में सो गया।
दूसरे दिन एक गरीब दरिद्र, छोटा सा बालक साधू के आश्रम आया, साधू उस वक्त कान्हा को भोग लगाने जा रहा था, उस बालक ने कहा, साधू महराज मुझे कुछ खाने दे दीजिए मुझे जोरो की भूख लगी है।
साधू गुस्सें से तिलमिला गया, एक तो दरिद्र और दूसरा कान्हा की भक्ति में विध्न, उसने आव देखा ना ताव, एक पत्थर उठाकर बच्चें को दे मारा, उस दरिद्र बच्चें के सर से खून निकलने लगा, साधू ने कहा भाग यहाँ सें, बच्चा उसके आश्रम से निकल गया और जाकर उस कोडी के घर में चला गया, कोड़ी ने उसका रक्त साफ किया पट्टी बाँधी और उस भूखें बच्चें को भोजन दिया, बच्चा भोजन कर के चला गया।
दूसरे दिन फिर वो बच्चा साधू के आश्रम आया, साधू ने फिर उसे मारा और भागा दिया, फिर वह कोड़ी के घर चला गया, कोड़ी ने फिर उसकी पट्टी बाँधी और खाने को दिया बच्चा खाना खाकर चला जाता।
वो बच्चा रोज आता साधू उसे मारता और वो कोड़ी के पास चला जाता। एक दिन साधू स्नान के लिए जा रहा था उसे रास्तें पर वही कोड़ी दिखा साधू ने उसे देखा तो आश्चचर्य से भर गया, उस कोड़ी का कोड़ गायब हो चुका था, वह बहुत ही सुंदर पुरूष बन चुका था, साधू ने कोड़ी नाम लेकर कहा, तुम कैंसे ठीक हो गयें, कोड़ी ने कहा, मेरे कान्हा की मर्जी, पर साधू को रास नही आया, उसने मन ही मन फैसला किया, पता लगाना पड़ेगा।
दूसरे दिन फिर वहाँ दरिद्र बच्चा साधू के आश्रम आया, साधू ने फिर उसे मारा, बच्चा जाने लगा, तो साधू उठ खड़ा हुआ और मन ही मन सोचने लगा, मैं इस दरिद्र बच्चें को रोज मारता हूं, ये रोज उस कोड़ी के घर जाता हैं, आखिर चक्कर क्या हैं देखना पड़ेगा, साधू पीछे पीछे जाने लगता हैं जैसें ही वह कोड़ी की झोपड़ी में पहुंचता हैं, उसकी ऑखें फटी की फटी रह जाती हैं।
स्वंय तीनो लोक के स्वामी कान्हा बांके बिहारी कोड़ी के घर पर बैंठे हैं और कोड़ी उनकी चोट पर मलहम लगा रहा हैं, और कान्हा जी भिक्षा में मांगी ना जाने कितनो दिनों की बासी रोटी को बड़े चाव से खा रहें हैं।
साधू कान्हा के चरणों में गिर कहने लगा, मेरे कान्हा मेरे स्वामी मेरे आराध्य आपने मुझ भक्त को दर्शन नही दिये, और इस नीच को दर्शन दे दीये, मुझसे क्या गलती हो गयी, जो आप इस कोड़ी की झोपड़ी में आ गयें, भिख में मांगी बासी रोटी खा ली पर, मैं आपके लिए नित्य प्रतिदिन खीर चावल बनाता हूं उसे खाने नही आये, बोलो कान्हा बोलो।
तब कान्हा जी ने कहा हे साधू, मैं तो रोज तेरे पास खाना मांगने आता था, पर तु ही रोज मुझे पत्थर से मारकर भागा देता था, मुझे भूख लगती थी, और मैं इतना भूखा रहता था, की इस मानव के घर चला आता था, ये जो मुझे प्यार से खिलाता मैं खाकर चला जाता, अब तु ही बता इसमें मेरी क्या गलती।
साधू कान्हा के पैर पकड़ रोने लगता हैं और कहता हैं, मुझसे गलती हो गयी, मैं आपको पहचान नही पाया, मुझे माफ कर दिजिए, और फिर कहता हैं, तीनो लोक के स्वामी गरीब भिखारी दरिद्र बच्चा बनकर आप मेरे आश्रम क्यूं आते थे, मैं तो आपको दरिद्र समझकर मारता था, क्यूकि मेरे कान्हा तो स्वामी हैं वो दरिद्र कैसें हो सकते हैं।
कान्हा जी ने कहा, हे साधू, तुझे किसने कहा मैं सिर्फ महलों में रहता हूं, तुझे किसने कहा, मैं सिर्फ 56 भोज खाता हूं, तुझे किसने कहा मैं, नंगे पैर नही आता, तुझे किसने कहा मैं दरिद्र नही, हे साधू, ये समस्त चरचरा मैं ही हूं, धरती आकाश पृथ्वी सब मैं ही हूं, मैं ही हूं महलों का स्वामी, तो मैं ही हूं झोपड़ी का दरिद्र भिखारी, मैं ही हूं जो प्यार और सच्ची श्राध्दा से खिलाने पर बासी रोटी खा लेता हैं और स्वार्थ से खिलाने पर 56 भोग को नही छूता, मैं हर जीव में बसा हूं, तु मुझे अमीर गरीब में ढूंढता हैं।
तुजसे अच्छा तो ये कोड़ी हैं जो सिर्फ एक ही बात जानता हैं, ईश्वर हर किसी में निवास करते हैं ना की धनवान में, कान्हा कहने लगे, तुने मेरी भक्ति तो की पर अधूरी और कान्हा अंतर्ध्यान हो जाते हैं।
साधू उनकी चरण रज पकड़ फूट फूटकर रोने लगता हैं और कहता हैं जिसका एक पल पाने के लिए लोग जन्मों जन्म तप करते है वो मेरी कुटिया में भीख मांगने आता था और मैं मूर्ख दरिद्र समपन्न देखता था और कोड़ी के पैर पकड़ कहता हैं मैंने तो सारी जिंदगी अधूरी भक्ति की
आप मुझे सच्ची भक्ति के पथ पर ले आइयें, मुझे अपना शिष्य बना लीजिए, कोड़ी उसे गले लगा लेता हैं।
"🌾ईश्वर कण कण में हैं वो भिखारी भी जो आपकी चौखट पर आता हैं ना, वो भी ईश्वर की मर्जी हैं। क्यूकि किसी ने कहा हैं वो भीख लेने ही नही, दुआ देने भी आता हैं, और किसी महान आदमी ने कहा हैं।
दानें दानें पर लिखा हैं खाने वालें का नाम
इसलिए कभी किसी का अनादर मत कीजिए।
🌿 जय बाँकेबिहारी लाल की 🌿
🙏राधें_राधें🙏
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