राम राम

"महान लक्ष्य के लिए दिया गया कोई भी बलिदान व्यर्थ नही जाता है!"

शब्द है उस क्रांतिकारी के जिसे 28 वर्ष की युवावस्था में 50 साल जेल का दंड इसीलिए दिया गया था क्योंकि वो अपनी मातृभूमि को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए प्राणपण से लगा हुआ था।

ये है हमारी स्वतंत्रता संग्राम के वो वीर जिनकी गाथाएँ गांधी-नेहरू के शोर में कही दब सी गयी है। ये है विनायक दामोदर सावरकर, जिन्होंने आयु के स्वर्णिम युवा वर्ष अंडमान की भयानक कालकोठरी में 12 साल व्यतीत किये, और फिर रत्नागिरी में 6-7 साल नज़रबंद रहते हुए भी देश को मुक्त कराने के अपने प्रबल निश्चय के लिए कार्य करते रहे।

आज इनके कष्टमय दंडमय संघर्षमय किन्तु देशप्रेममय जीवन की कुछ झलकियाँ ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से जानने का प्रयत्न करते है..

अब ये धनु लग्न की कुण्डली में लग्नेश बृहस्पति की सुंदर स्थिति सप्तम भाव मे देखिए, सप्तम अर्थात साझेदारी-समूह बनाना, सप्तम अर्थात सामाजिक जीवन-जनता के प्रति समर्पित जीवन (चतुर्थ से चतुर्थ)

वास्तव में ही इनका जीवन अंत तक जनता पर ही समर्पित रहा।

यहाँ अष्टमेश चंद्रमा तृतीय भाव में स्थित होकर अदम्य साहस प्रदान कर रहे है और मंगल पंचम भाव मे स्वराशिस्थ होकर कुशाग्र बुद्धि-निरंतर लेखन पठन और एक सम्मानित व्यक्तित्व प्रदान कर रहे है।

यहाँ देखिए षष्ठ भाव यानी शत्रुओं का भाव, षड्यंत्रों का भाव, अड़चनों का भाव और बंधन का भाव- इसमें शनि बुध एवं सूर्य का जो योग बन रहा है वो इनके जीवन की कष्टमय स्थिति का वर्णन कर रहा है।

यहाँ जो सप्तम भाव मे स्थित गुरु है उनकी महादशा में ब्रिटेन पढ़ाई के लिए जाना हुआ, किन्तु अपने क्रांतिकारी क्रियाकलापों के कारण 1910 में हिरासत में ले लिए गए।

दशा थी गुरु/बुध। 

बुध यहाँ षष्ठ भाव मे है और कन्या नवमांश में लग्न स्थित होकर षष्ठेश शनि से दृष्ट है जो बंधन का कारण बना।

फिर कानूनी कार्यवाही चली और जुलाई 1911 में 50 साल की जेल का दंड देकर अंडमान की भयावह सेलुलर जेल भेज दिया गया।

दशा थी गुरु/शुक्र।

शुक्र तो यहां स्वयं षष्ठेश है और नवमांश में भी व्यय भाव मे स्थित है, अर्थात किसी बाहर के स्थान पर बंधन।

फिर इसके बाद की पूरी गुरु महादशा में जेल की यंत्रणा सहन करते रहे।

जब शनि महादशा आयी तब शनि/शनि में रत्नागिरी में एक सरकारी बंगले नज़रबंद करके स्थानान्तरण कर दिया गया जहाँ निरंतर लेखन कार्य चलता रहा क्योकि नवमांश में शनि पंचमेश (लेखन) है एवं गुरु के साथ राशि परिवर्तन योग में है। 

इस शनि महादशा के अंत मे जब गुरु की अंतर्दशा आयी तब सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त किये गए। गुरु ने यहाँ अपने चतुर्थेश होने का दायित्व निभाया और ये बंधन से बाहर आ गए।

अब महादशा थी बुध की जो लग्न में षष्ठ भाव में, नवमांश में लग्न में एवं दशमांश कुण्डली में दशमेश गुरु के साथ पंचम भाव मे है।

इसी बुध की महादशा में उदय हुआ "हिन्दू महासभा" का!

और हिंदुत्व के लिए अपने तन मन धन से समर्पित होकर ऐसे कार्य किये की आजतक हिन्दू जनमानस में इनके प्रति श्रद्धा भाव है।

षष्ठेश शुक्र की महादशा में जब षष्ठ भाव स्थित सूर्य की अंतर्दशा आयी तब अन्न-जल त्यागकर आत्मार्पण कर दिया।

सावरकर जैसे दो तीन क्रांतिकारी और हो जाते तो हमारा सेक्युलर भारत आज स्वर्णिम भारत होता।

भगवत्कृपा ।।