पिछले लेख में मैंने शनि से सम्बंधित कुछ तथ्य आप के समक्ष प्रस्तुत किये थे जिसे आपने बहुत पसंद किया धन्यवाद। इसी क्रम में आज के लेख में हम कुंडली के समस्त भावो में शनि के होने पर क्या प्रभाव होता है इसको समझते है।

· लग्न में शनि: यदि जन्मकुंडली में शनि पहले भाव यानी कुंडली के लग्न में हैं तथा शुभ स्थिति में हो तो ऐसा जातक एक राजा के समान जीवन जीता है अर्थात उसकी जिंदगी एश्वर्या पूर्ण रहती है। उसका सामाजिक व राजनीतिक रुतबा भी होता है तथा नेतृत्व के गुण पाए जाते है।पीड़ित होने पर नकारात्मक फल प्राप्त होते है।

· द्वितीय (धन भाव) में शनि: कुंडली में इस भाव में शनि हो , तो जातक बहुत बुद्धिमान, दयालु और न्याय कर्ता माना जाता है। वह आध्यात्मिक और धार्मिक स्वभाव का भी होता है। ऐसे जातक का भाग्योदय उसके जन्म स्थान या पैतृक निवास स्थान से दूर ही होता है तथा जातक अपने परिवार से दूर रहता है चाहे जीविका यानी कैरियर की वजह से या किसी अन्य कारण से।

· तृतीय (पराक्रम भाव) में शनि :यदि कुंडली में तृतीय भाव में शनि होता है, वह जातक स्वनिर्मित होता है अर्थात अपनी मेहनत तथा संघर्ष से जिंदगी में सफल होता है इसके अतरिक्त ऐसे जातक को समाज में बहुत मान सम्मान मिलता है। यदि तृतीय भाव में शनि अशुभ स्थिति में हो तो वह व्यक्ति बहुत आलसी हो जाता है और उसकी प्रवृत्ति भी बहुत निम्न स्तर की हो जाती है।

· चतुर्थ (सुख भाव) में शनि: कुंडली के चतुर्थ भाव में शनि ज्यादा शुभ नहीं माना जाता यहाँ पर शनि स्वास्थ्य समस्या देता है। जिन भी जातक की कुंडली में शनि इस भाव में होता है वे कई बार जीवन में मकान बनाने से वंचित रह जाते हैं। यह भाव माता का भी होता है अतः माता के लिए भी कोई न कोई कष्ट बना रहता है।

· पंचम भाव (सुत भाव) में शनि: कुंडली के पंचम भाव में शनि व्यक्ति को बहुत रहस्यवादी बना देता है। ऐसे जातक अपनी पत्नी तथा बच्चों की ज्यादा चिंता नहीं करते और दोस्तों के मध्य जातक की अच्छी छवि नहीं होती। जातक का विवाह तथा संतान विलम्ब से होने की संभावना होती है। पंचम का शनि संतान कष्ट, कुटिल, दिवालिया योग भी देता है।

· षष्ठ भाव (रिपु भाव): कुंडली के षष्ठ भाव में शनि के होने से जातक अपने शत्रुओं पर हमेशा विजय हासिल करता है, वह साहसी होता है। यहाँ पर शनि यदि शुभ अवस्था में हो तो प्रतियोगिता/प्रतिस्पर्धा में सफलता दिलाता है। परन्तु षष्ठ भाव में शनि वक्री अवस्था में हो या निर्बल हो पीड़ित हो तो जातक को आलसी तथा रोगी भी बना देता है। जातक कर्जदार भी होता है।

· सप्तम भाव (जाया भाव) में शनि: यदि कुंडली के सप्तम भाव में शनि हो तो जातक मशीनरी और लोहे के व्यापार में सफल रहता है। यहाँ पर शनि को दिग्बल प्राप्त होता है। सातवां भाव दांपत्य का भी कहलाता है अतः विवाह में विलम्ब होता है। शनि के इस भाव में पीड़ित होने पर वैवाहिक सुख में कमी रहने की सम्भावना होती है तथा सांझेदारी के व्यापार में हानि होती है।

· अष्टम भाव(आयु तथा मृत्यु भाव) में शनि: यदि कुंडली के अष्टम भाव में में शनि है तो वह जातक की आयु वृद्धि करता है। लेकिन, पिता के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता।

· नवम भाव (भाग्य भाव) में शनि: कुंडली के नवम भाव में यदि शनि हो तो वह जातक को बहुत सकारात्मक परिणाम देता है तथा भाग्योदय करता है। यदि नवम भाव में शनि उत्तम स्थिति में हो तब जातक अपने पारंपरिक और पारिवारिक धर्म का निष्ठा पूर्वक पालन करेगा। जातक एक आध्यात्मिक व्यक्ति होगा और जातक को वेद वेदांग और दूसरे पारंपरिक शास्त्रों का उत्तम ज्ञान होगा।

· दशम भाव (कर्म भाव) में शनि: कुंडली का दशम भाव में शनि अच्छे परिणाम देता है। ऐसा व्यक्ति सरकार से भी लाभ प्राप्त करता है और जीवन का पूरा आनंद लेता है। दशम स्थान में स्थित शनि के प्रभाव से जातक सुखी, प्रवासी, बलवान, साहसी, पराक्रमी एवं भावुक होता है। जातक महत्वाकांक्षी एवं सफल व्यवसायी होता है तथा जातक न्यायप्रिय, भाग्यशाली, उदार और धनवान होता है।

· एकादश भाव (आय भाव) में शनि: जिस जातक की कुंडली के एकादश भाव में शनि हो, वह व्यक्ति बहुत धनी होता है, कल्पनाशील होता है और जिंदगी के सभी सुख प्राप्त करने वाला होता है परन्तु ऐसा व्यक्ति चापलूस भी होता है।

· द्वादश भाव (व्यय भाव) में शनि: कुंडली के द्वादश भाव में शनि हो तो वह भी अच्छे परिणाम देता है। ऐसे व्यक्ति को परिवार सुख भी मिलता है और व्यापार में भी वृद्धि होती है।

नोट : यहां ये भी देखना जरूरी होता है कि शनि जिस किसी भी भाव में है वहा पर कौन सी राशि है। क्योंकि उस भाव की राशि मिलने वाले फल को प्रभावित करेगी। जैसे यदि प्रथम भाव में शनि उचित फल देता है। लेकिन आपका लग्न कर्क यानि चंद्र का है तो वहां पर शनि का फल चंद्र के कारण पूरी तरह से बदल जाएगा।

अगले लेख में समस्त लग्न में तथा शनि की अन्य ग्रहों से युति के प्रभाव के बारे में प्रकाश डालने का प्रयास करूँगा।

IIजय श्री रामII