।। जय श्री राम ।।

#विष्णुसहस्त्र नाम शापविमोचन विधि:-

बिना शाप विमोचन किये विष्णुसहस्त्र नाम पाठ करने से उसका कोई परिणाम प्राप्त नहीं होता है। क्युकी यह पाठ महादेव द्वारा शापित है इसीलिए सबसे पहले इसे शाप में से मुक्त करना बहुत ही जरुरी है।

#श्री विष्णुसहस्त्रनाम

शापविमोचन विधि:-

विष्णोः सहस्त्रनाम्नां यो न कृत्वा शापमोचनम |

पठेच्छुभानि सर्वाणि स्तुस्तस्य निष्फलानि तुम ||

अर्थात विष्णुसहस्त्र पाठ शापविमोचन के बिना अगर किया जाए तो वो निष्फल हो जाता है।

#रुमाशाप विमोचन विधी :-

सर्वप्रथम विनियोग करे |

#विनियोग : अस्य श्री विष्णोर्दिव्यसहस्त्रनाम्नां रुद्रशापविमोचन मंत्रस्य महादेवऋषिः | अनुष्टुप छन्दः | श्री रुद्रानुग्रहशक्तिर्देवताः | सुरेशः शरणंशर्मेति बीजं | अनन्तो हुत भुग भोक्तेति शक्तिः | सुरेश्वरायेति कीलकं | रुद्रशाप विमोचने विनियोगः | 

#उसके पश्चात् न्यास का विधान है सर्वप्रथम करन्यास कर बाद में हृदयादि न्यास का विधान करना है |

#हृदयादिन्यास : ॐ क्लीं ह्रां हृदयाय नमः | ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा | ॐ ह्रुं शिखायै वौषट | ॐ ह्रैं कवचाय हुम् | ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय नमः | ॐ ह्यु: अस्त्राय फट |

#इसके बाद फिर शापविमोचन मंत्र का सौ बार जाप करे |

#मंत्र : 'ॐ क्लीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं हूँ : स्वाहा"

इस मंत्र का सौ बार जाप करे |

#अब यहाँ से विष्णुसहस्त्र नाम पाठ  की विधि शुरू होती है |

सर्वप्रथम इसका विनियोग करना है |

#विनियोगः ॐ अस्य श्री

विष्णोर्दिव्यसहस्त्रनामस्तोत्रमंत्रस्य भगवान् वेदव्यास ऋषिः | श्री विष्णुः परमात्मा देवता अनुष्टुप छन्दः |

अमृतांशूद्भवो भानुरिति बीजम | देवकीनन्दनः स्रष्टेति शक्तिः | त्रिसामा सामग: सामेति हृदयं |

शङ्खभृन्नन्दकी चक्रिति कीलकं शार्ङ्गधन्वा गदाधर इत्यस्त्रं | रथांगपाणिरक्षोभ्य इति कवचं | उद्भवः क्षोभणो देव इति परमोमन्त्रः | श्री महाविष्णु प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।

#उसके पश्चात् करन्यास-हृदयादिन्यास करने है।

#करन्यास : ॐ विश्वं विष्णुर्वषट्कार इत्यङ्गुष्ठभां नमः |

अमृतांशूद्भवो भानुरिति तर्जनीभ्यां नमः | ब्रह्मण्यो

ब्रह्मकृद ब्रह्मेति मध्यमाभ्यां नमः | सुवर्णबिन्दुरक्षोभ्य

इत्यनामिकाभ्यां नमः | निमिषोनिमिषः स्त्रग्वीति

कनिष्ठिकाभ्यां नमः | रथांगपाणिरक्षोभ्य इति

करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

हृदयादिन्यास : सुव्रतः सुमुखः सूक्ष्मः ज्ञानाय हृदयाय नमः | सहस्रमूर्धा विश्वात्मा ऐश्वराय शिरसे स्वाहा |

सहस्त्रार्चिः सप्तजिह्व शक्त्यै शिखायै वौषट | त्रिसामा सामगः साम बलाय कवचाय हुम् | रथाङ्गपाणिरक्षोभ्य

तेजसे नेत्राभ्यां वौषट | शार्ङ्गधन्वा गदाधरः वीर्याय अस्त्राय फट | ऋतुः सुदर्शनः कालः भूर्भुवः स्वरों | इति दिग्बन्धः।

#उसके पश्चात भगवान् विष्णु का ध्यान धरे |

#ध्यान : सशङ्खचक्रं सकिरीट कुण्डलं सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणं|

संहारवक्ष स्थल कौस्तुभ श्रियं नमामि विष्णु

शिरसाचतुर्भुजं ||

#या फिर यह भी ध्यान कर सकते है।

#ध्यानः शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं |

विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगं |

लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं | वन्दे

विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथं ||

|| जय श्री कृष्ण ||